मेवाड़ का इतिहास || mewar ka itihas || mewar history in hindi


मेवाड़ का इतिहास || mewar ka itihas || mewar history in hindi

मेवाड़ का इतिहास

वंश- गुहिल
 कुल - सूर्यवंशी
✪ प्राचीनजनपद - शिवी
 राजधानी - माध्यमिका
✪ प्राचीननाम - मेदपाट
 संस्थापक - गुहिल
✪ स्थापना - 566 .
✪ वास्तविक संस्थापक - बप्पारावल
✪ मध्यकालीन मेवाड का स्वर्णिमकाल (डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार)- रावलजैत्रसिंह
✪ कुलदेवी - बाणमाता
✪ विशेषता- विश्व का सबसे प्राचीनतम एव एकमात्र जीवित राजवंश
✪ राजध्वज -उगता सूरज एवं धनुषबाण अंकित
✪ उत्पत्ति-
    - श्रीराम के पुत्रकुश' के वंशज
  - ईरानी बादशाह नौ शेरवाँ आदिल के वंशज।    -(अबुलफजल)
    - वलभ नरेश शिलादित्य एवं रानी पुष्पावती का पुत्र गुहिल (टॉड एवं नैणसीरी ख्यात)  
✪ राजवाक्य -‘जो दृढ़ राखे धर्म को, तिहि राखे करतार'
✪ कुल शाखाएँ - 24 (मुहणोत नैणसी के अनुसार)
✪ मेवाड़ पर शासन करने वाली शाखाएँ-
  - रावल शाखा ( संस्थापक - क्षेमसिंह अन्तिम नरेश रावल रत्नसिंह) :
  - सिसोदिया शाखा (संस्थापक राहप प्रथम नरेश - राणा हमीर)
 राजधानियाँ-
  - आहड़ (अल्ट द्वारा )
  - चित्तौड़ (जैत्रसिंह द्वारा )
  - उदयपुर (महाराणा उदयसिंह द्वारा 1559 में स्थापित)
  - चावड ( महाराणा प्रताप द्वारा 1585 में स्थापित)
✪ कुप्रथाओं का अंत-
  - डाकण प्रथा का अंत सम्पूर्ण राजपुताने में सर्वप्रथम खेरवाड़ा (उदयपुर) में 1853 . में महाराणा        स्वरूप सिंह के काल में कैप्टन .J. C. बुक द्वारा प्रतिबंधित|
  - सती प्रथा का अंत 1861 . में
  - मानव व्यापार प्रथा पी.ए मेजर टेलर द्वारा 1863 . में महाराणा शम्भुसिंह के काल में प्रतिबंधित।
✪ नरेश जिसने विदेशी कन्या से विवाह किया - अल्लट (आलूराव ) का हूण राजकुमारी हिरण्यादेवी 
✪ दिल्ली सुल्तान से प्रथम विख्यात संघर्ष - रावल जेत्रसिंह द्वारा दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश से       भूताला युद्ध (1221 .-1229 के मध्य)
✪ सिक्के- 
  - पदशाही भिलाड़ी, चाँदौड़ी महाराणा भीम सिंह द्वारा अपनी बहिन चन्द्रकंवर की स्मृति में          प्रचलित स्वर्ण सिक्का)
  - एलची (अकबर द्वारा), उदयपुरी चित्तौड़ी, ढींगला स्वरूपशाही, त्रिशुलिया, भीड़रियाँ, नाथद्वारियाँ,               द्रम्म
✪ अफगान (शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार करने वाला नरश - महाराणा उदयसिंहचित्तौड़ दुर्ग     की चाबियाँ शेरशाह सूरी को भिजवाई )
✪ एकमात्र अबसर जब कुम्भलगढ़ पर विदेशी अधिकार हू- महाराणा प्रताप के काल में अप्रैल 1578       में शाहबाज खां (अकबर का सेनापति) का
✪ मुगल अधीनता अस्वीकार कर संघर्ष करने वाला प्रथम नरेश- महाराणा उदयसिंह
✪ मुगलों से संघर्ष में छापामार यद्ध पद्धति का प्रयोग करने वाला प्रथम नरेश- महाराणा उदयसिंह।
✪ मुगलों से संघर्ष करने वाले राजपूताने का प्रथम नरेश- महाराणा सांगा : बाबर के साथ (खानवायुद्ध         17 मार्च 1527 .)
 मुगलों से संघर्ष करने वाले अन्य सिसोदिया नरेश
    - महाराणा उदयसिंह : अकबर के साथ चित्तौड़    युद्ध 1567-68
  - महाराणा प्रतापअकबरके साथ हल्दीघाटी युद्ध - 21 जून 1576
    -. महाराणा अमरसिंह : जहाँगीर के साथ
    -. महाराणा जयसिंह : औरंगजेब के साथ
    -. महाराणा राजसिंह : औरंगजेब के साथ
 प्रथम मुगल - मेवाड़ संधि - महाराणा अमरसिंह एवं जहाँगीर के मध्य (5 फरवरी 1615 . )
 ब्रिटिश कम्पनी से संधि - महाराणा भीमसिंह द्वारा (13 जनवरी 1818 . )को
 1857 की क्रान्ति -
    -. महाराणा स्वरूपसिंह के काल में
    -. पी.. - कैप्टन शॉवर्स |
 मेवाड़ प्रजामण्डल - महाराणा भूपालसिंह के काल में
    - स्थापना - 24 अप्रैल 1938 ईं
  - स्थापक - माणिक्यलाल वर्मा
  - अश्वपति : महाराणा कुम्भा 
 कीकरण के समय अन्तिम नरेश-
  - महाराणा भूपालसिंह
  - तृतीय चरण संयुक्त राजस्थान संघ में
  - 18 अप्रैल 1948 . को
 स्त्रोत-
  -एकलिंग प्रशस्ति (971 ई.)
  - कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति (1460 ई.)
  - कुम्भलगढ़ प्रशस्ति (1460 ई.)
 उपाधियां-
  - भारत का चार्ल्स मार्टल (चार्ल्समादित्य ) : बप्पारावल
  - रणरसिक : रावलजेत्रसिंह
  - उभापतिवरलब्धप्रौढ़प्रताप : रावलतेजसिंह
  - शत्रुओं का संहार करने में सिंह के समान शूरवीर: रावलसमरसिहं
  - विषमघाटी पंचानन : राणाहम्मीर
  - मेवाड़ का भीष्म पितामह : युवराज चूण्डा
  - मेवाड़ का कर्ण : भामाशाह (कर्नल जेम्स टोड के अनुसार)
  - कीका ( छोटाबच्चा ): महाराणाप्रताप
  - विजयकटकाऊः महाराणा राजसिंह
  - ओ नीला घोड़ा रा असवार : महाराणा प्रताप
  - स्थापत्यकला का राजकुमार : महाराणा कुम्भा
  - भारत का अजेय शासक : महाराणा कुम्भा
  - अभिनव भरताचार्य (कुम्भाकासंगीतप्रेम): महाराणा कुम्भा
  - राणोरासौ (साहित्यकारों का आश्रय दाता): महाराणा कुम्भा
  - राजगुरु (राजनीतिक सिद्धांतों में दक्ष) : महाराणा कुम्भा
  - हालगुरु (पहाड़ी दुर्गों का स्वामी) : महाराणा कुम्भा
  -परमगुरु (अपने समय का सर्वोच्च शासक): महाराणा कुम्भा
  - छापगुरु (छापामार युद्ध कला में दक्ष) :महाराणा कुम्भा
  - नरपति : महाराणा कुम्भा
  - गजपति : महाराणा कुम्भा
  - दानगुरु : महाराणा कुम्भा
  - हिन्दू सुरताण : महाराणा कुम्भा
  - हिन्दूपत : महाराणा सांगा
  - सैनिकों का भग्नावशेष : महाराणा सांगा (टॉड के अनुसार)
  - मेवाड़ केसरी : महाराणा प्रताप
  - हल्दीघाटी का शेर : महाराणा प्रताप

 बप्पारावल 

- शासनकाल - 734 ई. से 753 ई.
- बप्पारावल के उत्थान में हारीतऋषि एवं एकलिंग महादेवजी का योगदान था। (नैणसी)
- बप्पारावल एवं कालभोज दो अलग- अलग शासक है। (कुम्भलगढ़ प्रशस्ति, आबूलेख- वि..1342      चित्तौड़ लेख वि.स, 1331 एवं रणकपुर प्रशस्ति वि.स.1446 ई. के अनुसार)
- 734 ई. - चित्तौड़ शासक मानमोरी से चित्तौड़ छीना
- अजमेर से बप्पारावल का 115 ग्रेन भार कास्वर्ण सिक्काप्राप्त हुआ जिसके ऊपर कामधेनु बछड़ा    शिवलिंग त्रिशूल एवं दण्डवत करता पुरुष अंकित है। (राजपूतानेप्रथमकाक्षत्रिय नरेश जिसका स्वर्ण    सिक्का प्राप्त हुआ)
- एकलिंग महात्मय प्रशस्ति के 20वें अध्याय के 21 श्लोक के अनुसार 753 ई. में बप्पारावल ने      राजनीति से सन्यांस लिया।
- बप्पारावल का समाधि स्थल नागदा ( एकलिंगपुरी ) के पास बप्पारावल के नाम से निर्मित है।
- बप्पारावल ने चतुर्मुखी प्रतिमा युक्त एकलिंगजी महादेव का मंदिर कैलाशपुरी (उदयपुर) में निर्मित    करवाया।
मुगलों से संघर्ष में छापामार युद्ध पद्धति का प्रयोग करने वाला सम्पूर्ण राजपूताने का प्रथम नरेश-मारवाड़ नरेश रावचन्द्र सैन राठौड़ था।जब कि वास्तव में सम्पूर्ण राजपूताने का पहला नरेश जो छापामार युद्ध पद्धति से परिचित था और शायद जिसने मालवा एवं गुजरात के साथ युद्ध में उसका प्रयोग भी किया हो वह महाराणा कुंभा था। छापामार युद्ध कला में प्रवीण होने के कारण ही कुंभा की उपाधि छापगुरू" थी।
- बप्पारावल ने एकलिंग जी को मेवाड़ का वास्तविक शासक माना जबकि स्वयं को उनका दीवान      समझा।
- मृत्यु - खुरासान ( मध्य एशिया) में( टॉड के अनुसार ) नागदा (एकलिंगपुरी) में जहाँ बप्पारावल    नाम से समाधि स्थल बना हुआ है।
नोट : - मेवाड़ नरेशों द्वारा राजधानी छोड़ने से पहले एकलिंगजी से प्राप्त की गई स्वीकृति आसकाँ कहलाती थी।

  अट  

- आहड़ में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
- मेवाड में नौकरशाही की स्थापना की।

 शक्तकुमार 

- शासनकाल : 977 ई . - 993 ई . 
- मावा के परमार नरेश ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया एवं आहड़ को नष्ट कर दिया।

 रावल सामत सिंह 

- शासनकाल : 1172 ई . - 1191 ई . 
- 1174 ई . - सामन्तसिंह ने गुजरात के अजय पाल सोलंकी को
- 1178 ई . - कीर्तिपाल या कीतू चौहान ने मेवाड़ परअधिकार कर सामंत सिंह को अपदस्थ किया।- - सामंतसिंह ने वागड़ प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया।
- सामंतसिंह की पत्नी पृथ्वीबाई प्रभा थी। जो अजमेर के अंतिम चौहान नरेश पृथ्वीराज चौहान की    बहिन थी।
- सामंतसिंह की मृत्यु तराईन प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय चौहान के पक्ष में लड़ते हुए हुई। 

 रावल जैत्रसिंह 

- शासनकाल : 1213 ई . - 1253 ई .
- प्रसिद्धि : दिल्ली के 6 सुल्तानों का शासन देखने वाला गुहिल नरेश 
- नाड़ोल ( जालौर ) नरेश उदयसिंह चौहान पर आक्रमण कर उसे अपनी पौत्री रूपादेवी / चचिकदेवी   ( चचिग देव चौहान की पुत्री ) का विवाह अपने पुत्र तेजसिंह गुहिल के साथ करने को विवश किया। - अवधि : 1227 ई . ( डॉ . गोपीनाथ शर्मा ने यह युद्ध 1221 ई . से 1229 ई के मध्य में लड़ा      जाना बताया है। )
- स्थान : राजसमंद जिला दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश को परास्त 
- स्त्रोत : हम्मीर मदमर्दन ( जयसिंह सूरी कृत ) हमले में राजधानी नागदा नष्ट                  फलस्वरूप चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया।
मेवाड़ का इतिहास || mewar ka itihash || mewar history in hindi
CHITTORGARH FORT

  चित्तौड़दुर्ग  

- निर्माता - चित्रांगदमौर्य 
- श्रेणी - गिरी
- नदियाँ - गंभीरी व बेड़च 
- आकृति - व्हेल जैसी 
- अन्यनाम - विचित्र कूट ( महाराणा कुम्भा के समय से ) एवं चत्रकोट 
  - खिज़ाबाद- ( अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1303 ई . में परिवर्तित) 
- प्रसिद्धि - ‘ राजस्थान का गौरव ’ एवं किलों का सिरमौर (गढ़ गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकीसब गढ़या ) - दक्षिणी - पूवा प्रवश द्वार 
- नोट : जागिरी किलों का सिरमौर कुचामन दुर्ग कहलाता 
- विशेषताएं - सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला किला 
- सबसे बड़ा लिविंगफोर्ट 
नोट : जैसलमेरदुर्ग राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा लिविंगफोट है।
- प्रसिद्ध स्मारक - नौ कोठा महल ( नवलखामहल ) 
- महासती स्थान ( राजपरिवार  श्मशान भूमि )
- हरामियों का बाड़ा 
- खात्ण रानी का महल 
- घी-तेल की बावडी

 रावल तेजसिंह 

- शासनकाल : 1253 ई. - 1262 ई.
- 1253 ई. - बलबन का असफल आक्रमण
- जयतल्लदेवी ( जेतलदेवी) 
- श्यामपाश्र्वनाथ मन्दिर (चित्तौड़) का निर्माण

 रावल समरसिंह 

- शासनकाल : 1262 ई. - 1302 ई.
- 1299 ई. - अलाउद्दीन खिलजी की गुजरात अभियान सेना से दण्ड वसूला।
- जीव हिंसा पर प्रतिबंध - आचार्य अमितसिंह सूर के उपदेश पर। 

 रावल रतनसिंह 

- शासनकाल : 1302 ई. - 1303 ई.
- पत्नी - रानी पद्ममिनी (पद्मावती)।
नोट :- कर्नल जेम्स टॉड ने भीमसिंह को रानी पद्मामिनी का पति बतलाया।
- पद्मावत-
  मलिक मुहम्मद जायसी की रचना। 
  1540 . में ( शेरशाह सूरी के काल में ) 
  पदमिनी की कथा का वर्णन।
  अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ आक्रमण का कारण पद्यमिनी को पाना बतलाया।
राघवचतन-  
  मेवाड़ सेना का तान्त्रिक ब्राह्मण
  भेद खुलने पर मेवाड़ से निष्कासित 
  अलाउद्दीन की कामवासना को पद्यमिनी को पाने हेतु उकसाया।
गोराबादल-
  अलाउद्दीन के साथ युद्ध में शहीद होने वाले मेवाड़ सेनानायक 
चित्तौड़ का प्रथम साका- ( राजस्थान का द्वितीय साका )
- 26 अगस्त 1303 . को
- अलाउद्दन खिलजी के आक्रमण पर रानी पद्यमिनी के नेतृत्व में जौहर 
नोट - अलाउद्दन के साथ रतनसिंह के युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी : अमीर खुसरो था।
लक्ष्मण सिंह सिसोदा- 
- अलाउद्दीन के साथ युद्ध में रतनसिंह के पक्ष में लड़ते हुए सात पुत्रों सहित शहीद।
- पौत्र हम्मीर जीवित 
खिज्राबाद- - अलाउद्दीन द्वारा पुत्र खिज़ खाँ के नाम पर चित्तौड़ का परिवर्तित नाम।
- खिजखाँ - 1303 ई . - 1313 ई . तक चित्तौड़ का प्रशासक।
मालदेव सोनगरा चौहान ( मुंछाला )- 
-अलाउद्दीन ने 1313 . - 1326 ई तक चित्तौड़ प्रशासक नियुक्त।
बनवीर चौहान-
- मालदेव सोनगरा का छोटा पुत्र 
- 1326 ई . में हम्मीर सिसोदा ने खिज्राबाद छीना।

  राणा हमीर  

- शासनकाल - 1326 ई . से 1364 ई .
- प्रसिद्धि - सिसोदिया शाखा का संस्थापक 
- सिंगोलीयुद्ध ( वर्तमान जिला चित्तौड़ ) 
- दिल्ली सुलतान मुहम्मद बिन तुगलुक को परास्त किया।
- निर्माण कार्य - अन्नपूर्णा माता मंदिर ( चित्तौड़ ) 

 राणा क्षेत्रसिंह ( खेता ) 

- अवधि - 1364  से 1382 ई  
- मेवाड़ मालवा संघर्ष का सूत्रपात हुआ।

 राणा लक्षसिंह ( लाखा )  

- शासनकाल - 1382 ई . से 1421 ई .
- पिछौला झील-  चिड़ीमार बंजारे द्वारा निर्मित
- चाँदी की खान- जावर में प्राप्त
हंसाबाई-
- पिता- मारवाड़ नरेश रावचूड़ा
- भाई- रणमल राठौड़
- पति- महाराणा लाखा पूर्व में विवाह प्रस्ताव लाखा के पुत्र युवराज चुण्डा के लिए आया था।)
- विवाह शर्त- उत्पन्न पुत्र मेवाड़ उत्तराधिकारी होगा।
- पुत्र- मोकल
युवराज चुण्डा-
-लाखा का पुत्र
- उपाधि- मेवाड़ का भीष्म पितामह' (हंसा बाई एवं पिता लाखा की विवाह शर्त को पूरा करने के     लिए  आजीवन मेवाड़ सिंहासन का संरक्षक बने रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की)
- दिल्ली सुलतान गियासुद्दीन तुगलुक शाह द्वितीय को परास्त कर ‘तीर्थकर' को समाप्त किया।
तारागढ़ ( बँदी) छद अभियान-
- बँदी नरेश हामाजी (हम्मीर सिंह हाड़ा) से तारागढ़ प्राप्त करने में असफल रहने पर लाखा द्वारा   प्रतिज्ञा
- जब तक बँदी नहीं जीत लूग अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा
- मेवाड़ी सरदारों ने प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए मिट्टी का तारागढ़ (चित्तौड़) बनवाकर लाखा से विजयी करवाया। इस अभियान में नकली तारागढ़ की रक्षा करते हुए कुभकर्ण हाड़ा ने अपनी जान दे दी।

 राणा मोकल 

- शासनकाल- 1421 ई. से 1433 .
- श्रृंगी ऋषि शिलालेख (1428 .)से मोकल द्वारा अपने जीवन काल में कुल किये गये 25 तुलादान   की जानकारी प्राप्त होती है।
- रामपुरा युद्ध-
  1428 ई. में
  स्थान- भीलवाड़ा।
  नागौर सूबेदार फिरोज खाँ को परास्त
- हत्या - जीलवाड़ा शिविर (गुजरात सैन्य अभियान के दौरान)
  में 'चचा' एवं 'मेरा' (दोनों राणा क्षेत्रसिंह की खातिन प्रेमिका करमा की अवैध संतानें जो रिश्ते में    मोकल के चाचा भी थे) द्वारा की गई।

 महाराणा कुंभा ( कुंभकर्ण ) 

- शासनकाल- 1433 ईमें 1468 .
- माता - सौभाग्या देवी
- पिता - राणा मोकल
- पुत्री - रमाबाई 
- श्रृंगार वरी - रमाबाई के विवाह अवसर पर चित्तौड़गढ़ में निर्मित पाणिग्रहण स्थल जो वर्तमान   में मन्दिर के रूप में स्थित है।
- संगीतगुरू- सारंगधर व्यास
- गुरू - जैन आचार्य हीरानन्द
- आराध्यदेव- विष्णु
- प्रमुख शिल्पी - मंडन
मेवाड़-मारवाड़ संघर्ष
- कारण - राणा लाखा एवं राणा मोकल के काल में प्रभाव बढ़ाने वाले मारवाड़ नरेश राव रणमल      राठौड़ की हत्या उसकी प्रेमिका भारमली के सहयोग से कराई (1438 ई. में चित्तौड़गढ़)
- परिणाम - कुम्भा एवं जोधा (राव रणमल राठौड़ का पुत्र के मध्य खेष बढ़ा।
- सारंगपुर युद्ध- (मध्यप्रदेश)- 1437 ई. में मालवा नरेश
महमूद खिलजी प्रथम को परास्त कर 6 माह तक बंदी रखा एवं बाद में राज्य सौंपते हुए रिहा कर दिया। विजय स्मृति में कीर्तिस्तम्भ (विजय स्तम्भ  चित्तौड़गढ) का निर्माण
बदनौर/बैराठगढ़ (भीलवाड़ा ) युद्ध -
- 1457 ई. में मालवा
 नरेश महमूद खिलजी प्रथम को पुन परास्त किया एवं विजय
 स्मृति में कुशालमाता मंदिर ( बदनौर ) का निर्माण
आँवल-बाँवल संधि - 1457 ई. में पाली में कुम्भा एवं जोधा
के मध्य । राव जोधा ने अपनी पुत्री श्रृंगारदेवी का विवाह कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ किया।
निर्मित दुर्ग- अचलगढ़ (सिरोही)- पुनर्निर्माण करवाया, बसन्तगढ़ (सिरोही) एवं भोमट दुर्ग (हूंगरपुर)

नोट:- कवि राजा श्यामलदास के ग्रन्थ वीर-विनोद के अनुसार महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ के 84 दुर्गों में से 32 दुर्गों का निर्माण करवाया।

प्रमुख साहित्यकार-
- मण्डन ('वास्तुमण्डन ‘रूपमण्डन, ‘कोदण्डमण्डन एवं राजवल्लभ का लेखक)
- नाथा ('वास्तुमंजरी' का लेखक)
गोविन्द (मण्डन का पुत्र कलानिधि‘' द्वारदीपिका उद्धारधोरिणी' का लेखक)
कुम्भा द्वारा स्वरचित ग्रंथ-
- संगीतराज ('साहित्य का कीर्तिस्तम्भ')
- संगीत मीमांसा - सूड़प्रबन्ध
- संगीतसुधा न्रत्यरत्नकोष
- कामराजरतिसार
- रसिकप्रिया’ (जयदेव द्वारा रचित गीत गोविन्द पर टोका)
नोट:- मान्यता है कि कुम्भा ने कान्हव्यास द्वारा रचित ग्रन्थ एकलिंग महात्म्य प्रशस्ति के प्रथम       खण्ड राजणन की भी रचना की।
-हत्या - मामदेव कुण्ड (कुम्भलगढ़) के किनारे ज्येष्ठ पुत्र उदा द्वारा

चित्तौड़गढ़ में ही महाराणा कुम्भा के स्थित पूर्व काल से ही स्थित सात मंजिला जैनकीर्ति स्तम्भ स्थित जबकि महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर युद्ध की स्मृति में नौ मंजिला "विजय स्तम्भ' बनवाया जिसे 'कीर्तिस्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है। जैन कीर्तिस्तम्भ का निर्माण वि.स. 1100 के आस
पास माना जाता है, जबकि जी.एच ओझा ने इसे वि.स. की चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बना बताया है जो 76 फीट ऊँचाए वं 7 मंजिला है। इसका निर्माण श्रेष्ठि जीजा के पुत्र नया' ने करवाया था, जो कि बघेरवाल जैन था। जैन कीर्तिस्तम्भ को 'मेरू' (मेरू कनक प्रभ) भी बोला गया है।
यह जैन कीर्तिस्तम्भ प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ जी को समर्पित किया गया है एवं इस के चारों पार्शव पर आदिनाथ जी की विशाल दिगम्बर (नग्न) मूर्तियाँ एवं ब्रह्मा, शिव तथा भैरव की भी मूर्तियाँ है। कहा जाता है कि कुम्भा ने अपने कीर्तिस्तम्भ के निर्माण में इसी जैन स्तम्भ से प्रेरणा ली थी। जैन कीर्तिस्तम्भ को आरम्भ से ही विजयस्तम्भ' भी बोला ाता था। लेकिन इस का संदर्भ किसी सैनिक संग्राम में प्राप्त विजय से था, जो यहाँ स्थापित जैन तीर्थकर ने प्राप्त की थी।
संस्कृत अभिलेखों में विजय पवित्रता तथा समृद्धि में कई जगह काम में आया है।आदिनाथ जी को समर्पित होने के कारण जैन 'कीर्तिस्तम्भ को ‘आदिनाथ स्मारक कहते है।


 कीर्तिस्तम्भ 

निर्माता - महाराणा कुम्भा
स्थित - चित्तौडगढ
निर्माणकाल - 1438 ई . - 1448 ई . 
स्मृति - कुम्भा द्वारा सारंगपुर विजय की स्मृति में 
मजिल - 9 
ऊँचाई - 122 फीट
सीढ़ियाँ - 157 
वास्तुकार - जेता ( मुख्यशिल्पी ) एवं जेता के तीन पुत्रों नाथा पामा ( नापा ) तथा पूंजा 
प्रतीक चिह्न- राजस्थान पुलिस 
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान 
अन्य नाम- विजयस्तम्भ '
विष्णुस्तम्भ ( उपेन्द्रनाथ डे के अनुसार ) 
हिन्दूदेवी - देवताओं से सजा हुआ एक व्यवस्थित संग्रहालय ' ( डॉ . गोपीनाथशर्मा ) 
पौराणिक देवताओं का अमूल्य कोष ' ( जी एच ओझा 
संगीत की भव्य चित्रशाला ( डॉ . सीमा राठौड़ ने कीर्तिस्तम्भ में उत्कीर्ण वाद्ययंत्रों एवं नृत्यरत   प्रतिमाओं के कारण कहा )
विशेषता
मान्यता है कि तीसरी मंजिल पर 9 बार अरबी में अल्लाह
नवीं मंजिल पर कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति स्थित थी
प्रसिद्धी
‘मूर्तियों का अजायबघर विश्वकोष शब्दकोष (डॉ. गट्र्ज के अनुसार)
एकमात्र स्तम्भ जो अन्दर-बाहर मूर्तियों से अटा पड़ा है।
तुलना
कुतुबमीनार से भी उत्तम' (कर्नल जेम्स टॉड)
‘रोम के टॉर्जन के समान सुन्दर इमारत' (फग्र्युसन)

 महाराणा उदयसिंह (उदा) 

शासनकाल - 1468 ई. से 1473 ई. .
पितृहन्ता शासक के रूप में कुख्यात

 महाराणा रायमल 

शासनकाल 1473 ई. से 1509 ई. ।

 महाराणा संग्राम सिंह 

शासनकाल - 1509 ई. से 1528 ई.
पत्ली- कर्मावती 
पुत्र- विक्रमादित्य एवं उदयसिंह

 राणा रतन सिंह 

शासनकाल - 1528 ई. से 1531 ई.

 महाराणा विक्रमादित्य 

शासनकाल - 1531 ई. से 1536 ई. '
संरक्षक - राजमाता कर्मावती

 महाराणा उदयसिंह 

शासनकाल - 1537 ई. से 1572 .
पिता - महाराणा संग्राम सिंह
माता - कर्मावती
जन्मस्थल - चित्तौड़गढ़
प्रसिद्धि - मेवाड़ का प्रथम नरेश जिसने अफगान शेर शाहसूरी की अधीनता स्वीकार की एवं                चित्तौड़दुर्ग की चाबियाँ शेरशाह को भिजवादी।
प्रथम मेवाड़ नरेश जिसने अकबर के साथ संर्घष में छापामार युद्ध पद्धति एवं पहाड़ों का प्रयोग किया।
राजधानी - उदयपुर (1559 ई. में ‘धूणी’ नामक स्थान पर उदयपुर के राजमहलों की नींव रखी)
पुत्र - प्रताप ज्येष्ठपुत्र
माता- जैवन्ताबाई

 महाराणा प्रताप 

जन्म- 9 मई 1540 ई. (नैणसी के अनुसार), 
     टॉड के अनुसार 1549 ई में
जन्मस्थान - कुम्भलगढ़
शासनकाल - 1572 से 1597 ई.
उपाधियाँ
'मेवाड़केसरी
हल्दीघाटी का शेर'
उपनाम
‘कीका’ (छोटाबच्चा)- बचपन का नाम
'ओ नीला घोड़ा रा असवार'
पोथ’ - साहित्यिक नाम
पत्ली - अजमादे पंवार
‘राजमहलों की क्रान्ति'- भ्राता जगमाल को गद्दी से हटाकर मेवाड़ का राज सिंहासन पाया।
प्रियहाथी - रामप्रसाद (हल्दी घाटी युद्ध के बाद अकबर ने प्राप्त कर के नाम ‘पीरप्रसाद’रखा।)
प्रियघोड़ा - चेतक
राज्या भिषेक ( कुल 2 बार )
- प्रथम- गोगुन्दा में
- द्वितीय (विधिवत)- कुम्भलगढ़ में
'जब तक चित्तौड़ को मुगलों से नहीं छीन ढूंगा, तब तक न
थाली में भोजन करूंगा एवं नहीं बिस्तर में शयन करूंगा
         महाराणाप्रताप (कुम्भलगढ़ में राज्याभिषेक के वक्त)
मृत्यु- चावण्ड में 19 जनवरी 1597 ई. को धनुष की प्रत्यन्चा लगने से। 
समाधि- बांडोली (उदयपुर) में 8 खम्भों की छतरी

 महाराणा अमरसिंह 

जन्म- 16 मार्च 1559
राज्या भिषेक- चावण्ड में
शासन अवधि- 1597 ई. से 1620 ई.

 महाराणा कसिंह 

शासनकाल - 1520 ई. से 1628 ई.

 महाराणा जगतसिंह 

शासनकाल- 1628 ई. से 1654 .

 महाराणा राजसिंह 

शासनकाल- 1654 से 1681 ई.
उपाधि- विजयकटकालु

 महाराणा जयसिंह 

शासनकाल - 1681 ई. से 1700 ई.
जयसमंदझील-
निर्माणकाल- 1687 ई. से 1691 ई.
झामरी रूपारेल एवं बगार नदियों का पानी रोककर निर्माण

 महाराणा अमरसिंह द्वितीय 

शासनकाल- 1700 ई. से 1716 ई.
देबारी समझौता- आमेर के निर्वासित नरेश सवाई जयसिंह द्वितीय के साथ अपनी पुत्री चंदकुंवरी का विवाह किया। 

 महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय 

शासनकाल- 1716 ई. से 1734 ई. तक

 महाराणा जगत सिंह द्वितीय 

शासनकाल - 1734 ई. से 1751 .

 महाराणा भीमसिंह 

शासनकाल- 1778 ई. से 1828 ई.

मेवाड़ का इतिहास || mewar ka itihas || mewar history in hindi मेवाड़ का इतिहास || mewar ka itihas || mewar history in hindi Reviewed by Ramcharan jat on October 11, 2018 Rating: 5

11 comments:

  1. Very nice 👌 Kya iska PDF mil sakta h

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  2. Sir Bhutala's war kab huya tha 1234 & 1227 me

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  3. jab raaj krne ke liye rajya tha hi nahi tab bhi kuchh shashako ka shashan kaal bataa diya jataa hai . aisa kyu? raana kumbhaa ne apne rajya ka bahut vistaar kiya aur saahitya aur construction ke bhi bahut kaam karwaye lekiye inke bajaaye pratap jo apne rajya ko paane me bhi jivan bhar sangharsh karte rhe unko mahaan btaana kahaa tak nyayochit khaa jaa sakta hai. kya kisi ki adhinta swikar nhi karna mahaanta ka suchak hai. ya vo shashak mahaan hai jisne bahut se rajya apne adhin kar liye

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    Replies
    1. Adhinta svikar na karna best he .in condition of pratap

      Delete
  4. Very very nice sir
    But aap ek jghe thoda or likh dete
    Rana saga ke karykal me 1509-1528

    Or mja aa jata

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