👉 वंश - कच्छवाहा
👉 कुल- सुर्यवंशी
👉 प्राचीन जनपद- मत्स्य
👉 राजधानी- विराटनगर
👉 प्राचीन नाम- ढूंंढाड
👉 संस्थापक- दूल्हाराई
👉 स्थापना- 1137 ईसवी
👉 कुलदेवी- जमुुुुवाय माता
- मंदिर
-निर्माता- दूल्हा राई
-स्थापना- जमवारामगढ़
👉 आराध्य देवी- शीला देवी
👉 उत्पत्ति-
- श्री राम के पुत्र कुश के वंशज
- रघुवंशी शासक कुंभ के वंशज (सूर्यमल मिश्रण )
- आमेर शिलालेख (1612 ईसवी) मैं रघुकुल तिलक शब्द का प्रयोग
👉 राज्य ध्वज-
- पंचरंगी ध्वजा (नीला, पीला, लाल ,हरा और सफेद रंग)
- सूर्य का अंकन
👉 राज वाक्य- यतो धर्म स्तुतो जय:
👉 राजधानियाँ
- दौसा - ( 1137 ई. दूल्हाराय द्वारा
- खोह - (जमवारामगढ़ ) दुल्हहाराय द्वारा
- आमेर - (1207 इ. में कोकिल देव द्वारा
- जयपुर - (1729 ईसवी में सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा
👉 सिक्का - झाड़शाही (सवाई राम सिंह द्वितीय काल में छह टहनियों युक्त कचनार की खाड़ी)
👉 राजपूताने का प्रथम नरेश जिसने अफगान शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार की- रतन सिंह कच्छवाहा
👉 राजपूताने का प्रथम नरेश जिसने मुगल अधीनता स्वीकार की - राजा भारमल
👉 राजपूताने की प्रथम राजपूत कन्या जिसका विवाह मुगल घराने में हुआ - हरका बाई
👉 राजपूताने का प्रथम नरेश जिसने मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किया- राजा भारमल
👉 राजपूताने की प्रथम राजपूत कन्या जिसने किसी मुगल उत्तराधिकारी (जहांगीर )को जन्म दिया -हरखा बाई
👉 राजपूताने का प्रथम नरेश जी से 7000 का मनसब प्राप्त हुआ -(अकबर द्वारा ) मिर्जा राजा मानसिंह प्रथम
👉 कछवाहा नरेश जिसके काल में मुगलों का आमेर पर अधिकार हुआ- सवाई जयसिंह द्वितीय
👉 जयपुर का नामकरण pink city हुआ- सवाई राम सिंह द्वितीय के काल में 1868 ईस्वी में
👉 ब्रिटिश कम्पनी से संधि- सवाई जगत सिंह द्वारा 2 अप्रैल 1868 ई. को
👉 1857 की क्रांति-
- सवाई राम सिंह द्वितीय के काल में
- पी.ए - ईडन
👉 जयपुर प्रजामंडल-
- महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के काल में
- स्थापना - जुलाई 1931
- संस्थापक - कपूरचंद पाटनी
👉 एकीकरण के समय अंतिम नरेश-
- महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय
- चतुर्थ चरण - वृहत्तर राजस्थान संघ में 30 मार्च 1949 ईस्वी को विलय
👉 उपाधियां
- राजा - भारमल
- अमीर उल उमरा- भारमल (अकबर द्वारा)
- फर्जंद- (पुत्र) - मानसिंह प्रथम
- मिर्जा राजा - मानसिंह प्रथम (10 दिसंबर 1989 ईस्वी को प्राप्त)
- मिर्जा राजा - जयसिंह प्रथम (1637 इसी में शाहजहां द्वारा कंधार अभियान के दौरान प्राप्त)
- मिर्जा राजा - जयसिंह द्वितीय मुगल बादशाह जहाँदरशाह द्वारा प्राप्त
- जयपुर का चाणक्य - जयसिंह द्वितीय
- सवाई - जयसिंह द्वितीय (औरंगजेब द्वारा प्राप्त)
- सरमद- ए- राजा- ए- हिंद - जय सिंह द्वीतीय ( 2 जून 1723 ईस्वी को मुगल बादशाह मोहम्मद शाह द्वारा प्राप्त )
- श्री राजाधिराज- जयसिंह द्वितीय (मुगल बादशाह मोहम्मद शाह द्वारा)
- राजराजेश्वर - जयसिंह द्वितीय (मुगल बादशाह मोहम्मद शाह द्वारा)
- ब्रजनिधि - सवाई प्रताप सिंह
- जयपुर का बदनाम शासक- सवाई जगत सिंह
- जयपुर का समाज सुधारक नरेश- सवाई रामसिंह द्वितीय (1857 ईस्वी के ग़दर के समय अंग्रेजों का सहयोग करने पर कंपनी द्वारा प्राप्त)
👉 कुप्रथाओं का अंत -
- सम्पूर्ण राजपूताने में इस समाधि प्रथा का सर्वप्रथम अंत जयपुर में पीए लूडलो द्वारा 1844 ईसवी में सवाई राम सिंह द्वितीय के काल में
- मानव व्यापार का संपूर्ण राजपूताने में सर्वप्रथम अंत जयपुर में पीए जॉन लूडलो द्वारा सवाई राम सिंह द्वितीय के काल में
- सती प्रथा का अंत 1844 इसी में,
- कन्याओं व बालकों के क्रय-विक्रय का अंत- 16 फरवरी 1847 ईस्वी को
- कन्या वध का अंत- 1844 इस्वी में
स्त्रोत- आमिर प्रशस्ति (1612 ईसवी)
• ज्ञात रहे कि मिर्जा राजा की उपाधि संपूर्ण रजवाड़े में सबसे पहले आमेर नरेश प्रथम कछवाहा को प्राप्त हुई।अमेर के ही जयसिंह प्रथम कछवाहा को मिर्जा राजा की उपाधि बाद में प्राप्त हुई।
• सवाई की उपाधि संपूर्ण रजवाड़े में सबसे पहले 1604 ईस्वी मैं मुगल बादशाह अकबर द्वारा जोधपुर नरेश राव सुरसिंह हाडा (1595 ईस्वी से 1619 ईस्वी) को प्रदान की गई थी।
मेरे प्यारे दोस्तों
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धन्यवाद
आमेर का कच्छवाहा वंश || aamer ka kachvaaha vans || Rajasthan history
Reviewed by Ramcharan jat
on
March 13, 2020
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